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राजकपूर : आम आदमी का फिल्मकार


राजकपूर

 

राज कपूर की गिनती भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े फिल्मकारों में होती है | उनके अभिनय और निर्देशन का जादू उनके निधन के दो दशक बाद आज भी कायम है | उनकी आवारा फिल्म रूस में आज भी उतनी हि मकबूल है जितनी कल थी | दुसरे विश्व युद्ध के बाद जब रूस गरीबी और तंगहाली के दौर से गुज़र रहा था तब राजकपूर की फिल्म “आवारा” का गीत “ज़ख्मो से भरा है सीना लेकिन हंसती है मेरी मस्त नज़र…” रूसी लोगों के सीनों पर मरहम साबित हुआ | रूस ही नहीं कड़ी देश हों या फिर लैटिन अमेरिकी देश या फिर चीन और अफगानिस्तान हों सब जगह राजकपूर की फिल्मे खूब सराही गयीं | वे अंतर्राष्ट्रीयता के मापदंडों पर खरे उतरने वाले पहले फिल्मकार थे |
राजकपूर ने अपनी फिल्मो में आज़ादी के बाद भारतीय समाज की चालीस साल की दास्तान को जीवंत करने का प्रयास किया | प्रेम के अलावा राजकपूर ने आम आदमी की कमजोरी को बड़े परदे पर जीवंत अंदाज़ में उतारा | उनकी फ़िल्में “आवारा” , “श्री ४२०” और मेरा नाम जोकर का नायक आम आदमी है जो समाज के कमज़ोर तबके के लोग हैं | वे जेब काटते हैं चोरी करते हैं, शांति से जीवन गुज़ारा जाके जैसी मामूली महत्वाकांक्षाओं के साथ जीवन गुज़ारना चाहते हैं |
आज राजकपूर जिंदा होते तो क्या करते….? आज उनकी फिल्मो का मुख्या किरदार इस विराट बाज़ार तंत्र का हिस्सा होते भी उसके तिलिस्म को तोड़ने की कोशिश करता | उनकी फिल्म का गाना “जीना यहाँ मरना यहाँ…..” लाखों लोगों के जीवन का मंत्र है और उनकी फिल्मे ज़िन्दगी जीने का नजरिया हैं |

 

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