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आहा ! जिंदगी…

    कितनी भागम भाग है इस जिंदगी में, कभी फुर्सत ही नहीं  मिलती कुछ न कुछ लगा हि रहता है | हम हमेशा एक किस्म की बेचैनी में घिरे रहते हैं और सोचते हैं की काश हमें भी चैन होता, हमें भी सुकून की जिंदगी मिली होती ! मनोविज्ञानियों का मानना हैकि चैन की जिंदगी इन्सान को ख़त्म कर देती है, यह उबाऊ होती है | वहीँ बेचैनी की जिंदगी जोशीली होती है, हर दम नई सीख देती हुई नए तजुर्बों से लबालब भरी हुई |
जब हम वक़्त के आईने में देखते हैं तो सुख और चैन हमें अपील करता है | लेकिन जब हम जिंदगी के लम्बे वक़्त में देखते है तो परेशानी होती है की हमने कोई जोखिम क्यूँ नहीं उठाया ..? अगर हम जोखिम उठा लेते तो यह जिंदगी यहीं पर अटकी न रह जाती, यह ज़िन्दगी कुछ और होती | कभी कभी हम महसूस करते हैं कि जिंदगी ठहरी हुई है, उसमे कुछ भी नया नहीं हो रहा है | लेकिन हम जो हैं उसे छोड़ने को तैयार नहीं होते हैं | आखिर कुछ तो है…! हम इसमें अटके रह जाते है | हम चाहते ज़रूर है कि हमारी जिंदगी में कुछ बदलाव हो जाये | लेकिन इस बदलाव के लिए हम ज़हमत उठाने के लिए तैयार नहीं होते | कुल मिलाकर हम परेशान रहते हैं, पर कहीं न कहीं हम खुश भी रहते हैं कि चलो कुछ तो है न | अब चाहे जैसी जिंदगी हो हम उसमे चैन और सुकून ढूंड लेते है | हम बदलना तो चाहते हैं बशर्ते हमारे आराम और चैन-ओ-सुकून में खलल न पड़े |
ऐसी जिंदगी एक मायने में चैन, आराम की जिंदगी है और ज़ाहिर है यह खासी उबाऊ भी है | दूसरी हम अपनी जिंदगी को लेकर परेशान है | उससे निकलने को लेकर छटपटा रहे हैं और छटपटाहट में हाथ पैर भी मार रहे है | यह जिंदगी अनिश्चित ज़रूर है, आराम, चैन, सुकून भी इसमें नहीं है जोश से भरी हुयी है | यह हर दिन हमें कुछ नए तजुर्बात देती है | आखिर जिंदगी में बदलाव तो चैन-ओ-सुकून से नहीं होता न |

2 विचार “आहा ! जिंदगी…&rdquo पर;

  1. आरिफ भाई,ज़िन्दगी में आराम हो ना हो पर,पर संतुष्टि ज़रूर होनी चाहिए!

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