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अवध के आखरी नवाब वाजिद अली शाह

नवाब वाजिद अली शाह

           अवध के आखरी नवाब वाजिद अली शाह जितना अपने कमज़ोर शासन के लिए जाने जाते हैं उतना ही नर्तक, कवि और कला पारखी होने के लिए भी | जहाँ उन्होंने कई राग रचे वहीँ कई दर्द भरी ग़ज़लें भी लिखीं |

         लखनऊ के नवाब अमजद अली शाह के घर ३० जुलाई १८२२ को जन्मे वाजिद अली शाह का पूरा नाम अब्दुल मंसूर मिर्ज़ा मोहम्मद वाजिद अली था | ये अवध के दसवें और आखरी नवाब थे | वाजिद अली शाह सन १८४७ में अवध के सिघासन पर बैठे | इनके शासन के नौवें साल में अग्रेजों ने अवध को अपने संरक्षण में ले लिया और आख़िरकार ७ फरबरी १९५६ को बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से अंग्रेजों ने अवध पर कब्ज़ा कर लिया | संगीत की दुनिया में नवाब वाजिद अली शाह का नाम बड़े अदब से लिया जाता है | ये संगीत की विधा “ठुमरी” के जन्मदाता के रूप में जाने जाते हैं | इनके ज़माने में “ठुमरी” को “कत्थक” नृत्य के साथ गया जाता था | कहा जाता है  कि  इनके दरबार में हर शाम संगीत की महफिलें सजती थीं | इन्होंने कई बेहतरीन “ठुमरियों” की रचना की | इनके बारे में प्रसिद्ध है की जब अंग्रेजों ने लखनऊ पर कब्ज़ा कर लिया और इन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा तो ये यह प्रसिद्ध “ठुमरी”  गाते हुए लखनऊ से विदा हुए………

” बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाये,
बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाये…
चार कहर मिल मोरी डोलिया सजावें,
मोरा अपना बेगाना छूटो जाये.
बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये…
आंगन तो पर्वत भयो और देहरी भयी बिदेस,
जाये बाबुल घर आपनो मैं चली पिया के देस.
बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये……”

उर्दू, अरबी और फारसी के विद्वान् व कलापारखी नवाब वाजिद अली शाह ने एक बढ़कर एक बेहतरीन ग़ज़लें लिखीं | इनकी लिखी हुई एक दुर्लभ ग़ज़ल है………..
” साकी कि नज़र साकी का करम
सौ बार हुई सौ बार हुआ
ये सारी खुदाई ये सारा जहाँ
मैख्वार हुई मैख्वार हुआ
जब दोनों तरफ से आग लगी
राज़ी-व-रजा जलने के लिए
तब शम्मा उधर परवाना इधर
तैयार हुई तैयार हुआ | ”
अंग्रेजों के देश निकला देने के बाद नवाब वाजिद अली शाह ने कलकत्ता (कोलकाता) में पनाह ली | २१ सितम्बर  सन १८८७ में कलकत्ता के मटियाबुर्ज़ में ६५ साल की उम्र में इस कला और संगीत परखी अवध के आखरी नवाब की मौत हो गयी | लेकिन अफ़सोस नवाब वाजिद अली शाह को कला और संगीत और पारखी होने के लिए नहीं बल्कि एक कमज़ोर शासक के तौर पर जाना जाता है |

2 विचार “अवध के आखरी नवाब वाजिद अली शाह&rdquo पर;

  1. उर्दू, अरबी और फारसी के विद्वान् नवाब वाजिद अली शाह |

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